Monday, December 3, 2018

मोमबत्ती का यह उजाला


दूब-घास का हरा मटमैला संसार
गांव-गंवई का देशज विस्तार
एक बिंदू को जबरन रेखा बना देना
अबीरी उल्लास का
सिंदूरी भार से दब जाना
एक सपनीली रात का गर्भपात
संस्कृति का अपनी ही बेटी के साथ
परंपरागत विश्वासघात है

अनुभव की यह दुहाई
पहले एक लड़की देती थी
अब एक औरत देती है
अपनी ही आंखों में
ओझल हुए सपनों को
चिड़ियों की तरह बुलाते हुए
भाषा की अंजुरी में अपने आंचल का
सबसे कीमती प्रसाद रखते हुए
मानवता की देहरी पर
अंतिम दीया बालते हुए

एक औरत में
एक लड़की की खोज पूरी करना
सिंदूर की लाली को
मलाल से भर देना नहीं
एक अहसास को
तर-बतर कर देना है
एक सुखी नदी को
फिर से सजल कर देना है
दिल को तार और
दिमाग को बुखार लिखने वाले
हैरान हो सकते हैं
साड़ी के कोर को
फ्रॉक का रिबन बनते देख

कौमार्य को धो देने
जवानी को खो देने के बाद भी
बची रह जाती है एक लड़की
संवेदना की किसी निर्जन बस्ती में
शब्दों के बगीचे में
किसी अनजान डाल पर
झूलते हुए झूला
भरती हुई किलकारी
लहराती हुई केश

अंगों के स्पर्श को
इच्छाओं के संघर्ष को
अनुभूति के द्वंद्व का नाम देकर
दुनिया चाहे लाख खेलती हो
शह-मात का खेल
पर 21वीं सदी के
दूसरे दशक की दस्तक बनी
आधी दुनिया ने
खेल के सारे नियम बदल दिए हैं
धोखे से प्यार चखने वाले
अब प्यार के नए
चोखे हथियार से हार रहे हैं
इश्किया मुहावरों की
अपनी थाती को
अपने ही हाथों सिधार रहे हैं

आज ऐसी ही एक लड़की ने
औरत के जिस्म से बाहर आकर
जलाई है मोमबत्ती
अपने नाम से
अपने जन्म लेने की
सालाना घोषणा करते हुए
मोमबत्ती का यह उजाला
हमारे समय के
सबसे घनघोर
अंधकार के खिलाफ है

Thursday, September 27, 2018

चेहरा




मैं तुम्हारे चेहरे पर हंस सकता हूं
मैं तुमसे पूछ सकता हूं
कि कोयले के खदान में क्या
कम पर गया था चट्टान
मैं कह सकता हूं कि तुम स्थगित कर दो
अपने चेहरे को अपने अस्तित्वबोध से

मैं तुम्हारे सामने नहीं खोल सकता
अपने महंगे कैमरे का लेंस
सौंदर्य को नरम के साथ
पोर्न मैगजीन को अपने बदन पर अोढ़ने वाले
कागज की तरह होना चाहिए मांसल
इश्तेहारों के दौर में
यह बयान सुलेख की तरह कंठस्थ है मुझे

मैं तुम्हारे चेहरे पर मलना चाहता हूं अवलेह
जिसे श्रम की भट्टियों की
महंगी राख से बनाया गया है
मैं बदल देना चाहता हूं तुम्हारा चेहरा
जैसे बाजार में बार्बीज
बदलती रहती है अपना लुक

मैं तुम्हारे चेहरे पर कविता लिखना चाहता हूं
पर कोई भी शब्द साथ देने को नहीं तैयार
संवेदना की विनम्र कोशिश
कैसे हाथ मलते रह जाती है
यह विवशता असहनीय है मेरे लिए
मैं इस असहनीयता से दूर निकलना चाहता हूं
रिहाई चाहता हूं मैं तुम्हारे चेहरे की बजती जंजीरों से 

तुम्हें लिखने की कोशिश में
कसीदे काढ़ने लग जाता हूं मैं
उन संगमरमरी पत्थरों के बने बूतों के
जिन्हें इतिहास के सबसे क्रूर राजाओं ने
नींद की गोली की तरह इस्तेमाल की गईं
लौंडियों के नाम पर बनवाए हैं

मैं तुम्हारे चेहरे को इस सदी से बाहर
पांच हजार साल की स्मृति से बाहर
फेंक देना चाहता हूं
नहीं है एेसे चेहरे की अब कोई गुंजाइश
बीत चुका है एेसे चेहरों का दौर
सरकार से लेकर संवाद और संवेदना
सबके डिजिटल हो जाने के बाद

चेहरे मतलब रंग होता है
चेहरा रौनक की बड़ी बहन है
काला या सांवला कोई रंग नहीं
अभिशाप है अभिशाप
चॉकलेट के रैपर से लेकर
भगवान की किताब तक
आज सब रंगीन हैं
सबके आवरण पर है
रौशनी का महोत्सव

मैं तुम्हें चेहरा कहना भी नहीं चाहता
तुम चेहरा हो भी नहीं सकती
तुम तो छाया हो बस
एक एेसी छाया
जो कभी मेरे सिर के ऊपर से
तो कभी पांव के बीच से गुजरी है
एक एेसी छाया
जो मन के धूप को रोक लेती है
खुद को और जलाने के लिए

तुम्हारे चेहरे पर मेरी आंखें मेरे सपने
दोनों मिलकर रोज गाते हैं शोकगीत
एक एेसा शोकगीत
जो चेहरे को सौंदर्य
और सौंदर्य को मांसल खरोंच से भर देने की यातना पर
अभिभूत न होने के दुख से जन्मा है

तुम्हारे चेहरे के कारण
आईनों ने झूठ बोलना सीख लिया है
इन आईनों ने ही तो सबक रटाया है औरत जात को
कि वह चेहरे को सिंदूर की सीध में नहीं
किसी पुरुष की रीढ़ में देखे
कि चेहरा सौंदर्य की डाल पर खिलने के लिए
नाखूनों में भरने के लिए होता है
संस्कृति और विकास का तेजाब मलने के लिए होता है

#रोप्रे
27.09.18


Saturday, September 22, 2018

शुष्कता अब शर्मनाक है



अच्छा है नभ बरस रहा है
बाहर-अंदर सब भींग रहा है
घोषित है हर ओर आद्रता
                पानी से मनमानी खतरनाक है
                शुष्कता अब शर्मनाक है

सोचा था वो एेसे होंगे
सोचा था वो वैसे होंगे
सोचा उसकी सोच के बाबत
                सोच बहुत यह खतरनाक है
                शुष्कता अब शर्मनाक है

पूरब को पुरबाई कह देना
वचन-वचन को गहराई
कुछ को कुछ लिख देना यूं ही
                आदत बहुत खतरनाक है
                शुष्कता अब शर्मनाक है

कुछ शब्द लिफाफे के भीतर
कुछ बात दबे तकिए के नीचे
कुछ शब्द हो गए सहयात्री
                संवाद बहुत यह खतरनाक है
                शुष्कता अब शर्मनाक है

#रोप्रे
22.09.18

Thursday, September 13, 2018

बोल


तू बोले तो
तिमिर तम घोर
तू बोले तो
भोरमभोर


कड़वे बोल
मीठे बोल
तू बोले तो
सब अनमोल


मेरी जिह्वा
मेरी वाणी
नहीं चाहिए
उनका मोल


13.09.18

Tuesday, September 11, 2018

अंग्रेेजी शिक्षिका


मेरी अंग्रेजी मेरे खिलाफ जा रही है
मुझे जो हिन्दी याद नहीं
वो अब याद आ रही है
मैं अंग्रेजी की लिखावट में
नहीं लिख सकती अपना गांव
यादों में तरोताजा सहेलियों की चुहल
शादी से पहले अलग बुलाकर कही 
भाभी की वो गुदगुदा देने वाली बात

हिन्दी वैसी है
जैसे मैं बांधती हूं अपने केश
एक ही हेयर बैंड को दोहरा-तिहरा कर
मेरी साड़ी भी मेरी हिन्दी की तरह है
साड़ी कोई हो मुझे सिंदूरी लगती है
जब भी देखा छूकर पहनकर

मैंने अंग्रेजी शौक से पढ़ी है
अच्छे अंक आए हैं इसमें
हिन्दी में बिंदी गलत नहीं लगनी चाहिए
स्कूल में यह सीख नाकाम रही
आज अपनी बेटी को दुलारते हुए
स्कूल की पोशाक पहनाते हुए
खूब आई याद
झूलते हलंत और बिंदी की बात

हिन्दी मुझे अपने छोटे से शहर के जंगल में
निर्भीक साइकल पर घूमने की हिम्मत देती है
जहां जानवर भी करते हैं हिन्दी में बात
जहां नो एंट्री जैसा कोई डरावना साइनबोर्ड नहीं
न ही किसी हाथ में एसिड की बोतल है

मैं अंग्रेजी की शिक्षिका हूं
साफ-सुथरी अंग्रेजी पर पूरे अंक देती हूं बच्चों को
पर मेरा स्त्री मन
मेरी सोच मेरा रहन
सब हिन्दी वर्णमाला है
इससे कीमती मेरे पास बहुत कुछ है
पर इससे जरूरी कुछ भी नहीं
क्योंकि अंग्रेजी में मुझे संझा-बाती नहीं आती
मैं नहीं गा सकती अंग्रेजी में आरती



11.09.18

दुविधा का समंदर


जिसे पाया नहीं
खोना उसका भी
कचोट देता है

जिसे गाया नहीं
उतरना उसका अधरों से
मन मसोस देता है

दोपहर सा मन
हर तरलता
सोख लेता है

दुविधा का समंदर
मांझी को हर बार
टोक देता है

सोच की
दुबली रेखा जो
अकेली ही गुजरती है

अकेले होने का खतरा
अच्छे-अच्छों को
दबोच लेता है

11.09.18

Wednesday, September 5, 2018

सिमोन फिदा है



तेरे मीनार पर चढ़कर
तुम्हारी दीवार पर जाकर
कोई कुछ भी लिख दे
यह कोई लापरवाही नहीं
एक सुनियोजित
सुविचारित जनतंत्र है
जिस पर लिंकन तो दुखी
पर सिमोन फिदा है

अस्मिता का कलश
बौद्धिकों के हाथों में
सर्वाधिक असुरक्षित है
आधी दुनिया की इस पूरी समझ को
नारा या विरोधी तख्ती की दरकार नहीं
उसे संवेदना का लोकतंत्र
और लोकतंत्र की संवेदना
दोनों की संभाल आती है

इनबॉक्स के घुसपैठिए तो होते हैं
एकदम आवारा पूंजी की तरह
कहीं भी लग्गी से नापकर
अपने साम्राज्य का ग्लोब नचाने वाले
झूठ को शहद
और सच को संग्रहालय की चाबी थमाने वाले

प्यार कुंठा का नहीं
भीतरी तंदुरुस्ती का शास्त्र है
सिंदूर से पहले सपना
सिंदूर के बाद पक्षी विहार है
समझ का ये पानी नहीं समा सकता
यूं ही प्यार की पवित्रता बांट रहे
पंडों के कमंडल में

नारी सशक्तीकरण का नया दौर
लैंगिक समकोण का नया दृष्टिकोण
घर की रसोई में पकी नई रोटी
बेगम अख्तर की ठुमरी की
अपडेटेड फरमाइश है

05.09.18

Monday, September 3, 2018

युगल अवतरण


ईश्वर के पहरे में
सोया है ताल
नीरवता का श्लेष
एकांत का रूपक नहीं
प्रकृति और आस्था का
युगल अवतरण
छवि और छाया का
मिलन बोध है

वृक्षों की छाया का
सघन पत्राचार
मंदिर की महिमा से
सीधे भगवान से
द्वैत के दर्शन का
अद्वैत बोध है

यहां आकर सूरज
बदलता है कपड़े
यहीं चांदनी
अपना धरती श्रृंगार है
यहीं आकर
उसने भिंगाया था मुझको
यहीं पर बसा
वो सजल याद है

03.09.18





Sunday, September 2, 2018

वायरल फीवर


दुनिया में पहला वायरल फीवर
गंदा पानी पीने
या कुछ भी ऐसा-वैसा खाने से नहीं हुआ होगा
मेडिकल साइंस को मान लेनी चाहिए यह बात
और बंद करना चाहिए
दुनिया के पहले रोग
पहले बुखार के खिलाफ प्रोपेगेंडा वार

वायरल फीवर की पहली
और आखिरी वजह एक है
और वह वजह सेब है
वह सेव जिसे कभी प्रेम का
तो कभी पाप का फल कहा गया
पर जैसा वह पहली बार चखा गया
वैसा फिर नहीं चखा गया

सेब अब अपने पेड़ों पर कम
बाजार में ज्यादा हैं
अब भी खाते हैं लोग उसे
पर नहीं खाता कोई सेब 
किसी अंतरंग प्रस्तावना से पहले
तर-बतर आस्था के साथ

मनुहारी चर्चा के बीच
 सेब की जगह अब शिलाजीत है
प्यार अब वायरल फीवर का नहीं
एक खुराक का नाम है

Saturday, September 1, 2018

मोहल्ले का नायक


गर्म धूप की सेंक से
पक रही हैं लड़कियां
मोहल्ले की लड़कियां
फरवरी के महीने में
बरामदे की कुर्सियों पर
छत पर बिछी चटाई पर
खुले लॉन में
ऊन के फंदों में
कस रही हैं लड़कियां
बैडमिंटन के कोर्ट में
शटल के पंखों से
उड़ रही हैं लड़कियां

लड़कों का क्रिकेट बॉल
उड़ा ला रहे हैं लड़कियों की बातें
नयी पकी खुशबू की सौगातें
नहीं कर पा रहे हैं यही काम
ऊपर उड़ रहे कई पतंग
प्रयास के बावजूद

सबको पता है कि
शाम से पहले तीन-साढ़े तीन बजे
इस वासंती मुहूर्त का नायक यहां नहीं है
वहां लड़कियों की बातों से भी
उसकी टोह मुश्किल है
बची कविता
तो वह भला यहां कैसे हो सकता है
वैसे यह कहना भी फिजूल है
यह जानने के बाद कि
वह धड़कनों का चित्रकार है
और इस साल वसंत के पास
उसी की कूची से धुला आईडेंटीटी कार्ड है

Friday, August 31, 2018

भाषा का न्यूटन


1.
भाषा के न्यूटन ने जब लिखा होगा
संधि विच्छेद का नियम
तब पैदा नहीं हुए होंगे चाणक्य
न ही होती होगी
राज्यों के बीच संधि
न होती होंगी शिखर वार्ताएं
न बनाता होगा कोई बढ़ई गोलमेज
तब बकरी की भाषा बोलने का
नहीं करता होगा कोई लोमड़ी रियाज
तब शरणार्थी
खैराती शामियाने के नीचे सिर छिपाने के लिए
नहीं करते होंगे फरियाद

2.
भाषा के न्यूटन ने
जब देखा होगा पहली बार दूरबीन से
भाषा में समास को
तब नहीं बने होंगे ब्रांड
न करती होंगी लड़कियां कैटवॉक
नए लिंग निर्णय के साथ

3.
रेहड़ी-पटरी पर बैठा प्रत्यय
आज जुमलों की अट्टालिकाएं देखकर
भाषा के न्यूटन को कोसता है
भाषा भी एक कूटनीति है
रात को अपनी रोटी
पत्नी की थाली में रखकर सोचता है
01.09.18

इनबॉक्स




पोस्टबॉक्स में रखा पोस्टकार्ड

इनबॉक्स में आकर हैरान है

यहां संवेदना बस सूचना

और सूचना एक युद्धक विमान है

01.09.18


लीन


आशा में क्षीण होना

आकांक्षा में निम्न होना

अपेक्षा में दीन होना

प्रेम में शून्य होना नहीं

संवेदना में लीन होना है

कविता में शालीन होना है