सदी के आखिर में बंधते
लाखों-करोड़ों असबाबों के बीच
छूट गयी है वह
लाखों-करोड़ों असबाबों के बीच
छूट गयी है वह
किसी पोंगी मान्यता की तरह
नहीं लेना चाहता कोई अपने साथ
नहीं चाहता होना कोई
नयी सदी में उसके पास
नहीं लेना चाहता कोई अपने साथ
नहीं चाहता होना कोई
नयी सदी में उसके पास
आने-जाने वाले हर रास्ते पर
चलते-फिरते हर शख्स को
जागो और चल पड़ो की
चलते-फिरते हर शख्स को
जागो और चल पड़ो की
अहद दे रही हैं नयी रफ्तारें
सांझ के दीये की तरह कंपती-बलती
कर रही है इंतजार
सांझ के दीये की तरह कंपती-बलती
कर रही है इंतजार
अब भी वह किसी के लौटने का
इस सदी के सबसे उदास दोपहर में
मैं पहुंचना चाहता हूं उसके पास
अभी-अभी छोड़ आई है
उलटा निशान तीर का जो
मैं पहुंचना चाहता हूं उसके पास
अभी-अभी छोड़ आई है
उलटा निशान तीर का जो
उस चौराहे पर
शोर जहां सबसे ज्यादा है
भीड़ है
रेंगती हैं अफवाहें
शोर जहां सबसे ज्यादा है
भीड़ है
रेंगती हैं अफवाहें
तरह-तरह की सांपों की तरह
सदी का सबसे बूढ़ा आदमी
वहां गुजरते समय के
वहां गुजरते समय के
आखिरी दरवाजे पर बैठा है
चमार के पेशे के साथ
पूरी आस्था और
चमार के पेशे के साथ
पूरी आस्था और
जन्मजात सेवा शपथ की अंटी बांधे
चलते-फिरते धूल उड़ाते
चप्पल-जूतों की चरमराहट दुरुस्त करने
चलते-फिरते धूल उड़ाते
चप्पल-जूतों की चरमराहट दुरुस्त करने
इस तारीखी मंजर के सामने
रुंधे गले की नि:शब्दता पूरी होती है
छलछला आये आंसूओं से
रुंधे गले की नि:शब्दता पूरी होती है
छलछला आये आंसूओं से
लिखता हूं पंक्ति अंतिम
सदी की अंतिम कविता की
यह इस सदी का अंतिम फ्लैश है
सदी की अंतिम कविता की
यह इस सदी का अंतिम फ्लैश है
भावुक कर दिया इस रचना ने।
ReplyDeleteशुक्रिया ZEAL...अनमोल प्रतिक्रिया के लिए...!
ReplyDeletegahre bhaav aur uttam shabd chayan. utkrisht rachna ke liye badhai sweekaaren.
ReplyDeleteशुक्रिया जेन्नी..!
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