बुझी नहीं है आग न झुका है आसमान
तमगे हम लाख पहनें
या कि पा लें पेशेवर रहमदिली का
सबसे बड़ा इनाम
तमगे हम लाख पहनें
या कि पा लें पेशेवर रहमदिली का
सबसे बड़ा इनाम
पत्थर में धड़कन की तरह
सख्त सन्नाटे को दरकाती आवाज
समय ने भी कर दिया इनकार
जिस सुनने से
कविता की ये पंक्तियां चुराई हैं मैंने भी
खासी बेशर्मी से
उस बच्चे की बेपरवाह आँखों से
सोचता हूं अब भी
गूंज नहीं रहा होगा क्या
युद्घ का वह अंतिम बिगुल
इतिहास की बेमतलब जारी
बांझ-लहूलुहान थकान के खिलाफ
वह अंतिम तीर वह अंतिम तान
बस अड्डे पर मिली
लावारिस मुस्कान
पांच रुपये में आठ समान
पांच रुपये में आठ समान
अच्छी कविता।
ReplyDeleteशब्द-शब्द संवेदना भरा है...
ReplyDeleteवाह भावपूर्ण अभिवयक्ति...
ReplyDeleteसमय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है। आपको और आपके सम्पूर्ण परिवार को हम सब कि और से नवरात्र कि हार्दिक शुभकामनायें...
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