अंगिका
समय, संवाद और सृजन
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Thursday, June 30, 2011
हां मेरी संगिनी
पटरी पर
जब तक दौड़ती है रेल
बनी रहती है धड़कन
जिंदगी की
हां मेरी संगिनी
होकर तुम्हारे साथ
होता है यह एहसास
कि पटरी के बिना रेल
और मैदान से बाहर
खेल का जारी रहना
यकीन नहीं
बस है एक मुगालता
सुब कुछ ठीक होने का
अपनी ही लानत पर
निर्भीक होने का
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