मैं
तुम्हारे चेहरे पर हंस सकता हूं
मैं
तुमसे पूछ सकता हूं
कि
कोयले के खदान में क्या
कम
पर गया था चट्टान
मैं
कह सकता हूं कि तुम स्थगित कर दो
अपने
चेहरे को अपने अस्तित्वबोध से
मैं
तुम्हारे सामने नहीं खोल सकता
अपने
महंगे कैमरे का लेंस
सौंदर्य
को नरम के साथ
पोर्न
मैगजीन को अपने बदन पर अोढ़ने वाले
कागज
की तरह होना चाहिए मांसल
इश्तेहारों
के दौर में
यह
बयान सुलेख की तरह कंठस्थ है मुझे
मैं
तुम्हारे चेहरे पर मलना चाहता हूं अवलेह
जिसे
श्रम की भट्टियों की
महंगी
राख से बनाया गया है
मैं
बदल देना चाहता हूं तुम्हारा चेहरा
जैसे
बाजार में बार्बीज
बदलती
रहती है अपना लुक
मैं
तुम्हारे चेहरे पर कविता लिखना चाहता हूं
पर
कोई भी शब्द साथ देने को नहीं तैयार
संवेदना
की विनम्र कोशिश
कैसे
हाथ मलते रह जाती है
यह
विवशता असहनीय है मेरे लिए
मैं
इस असहनीयता से दूर निकलना चाहता हूं
रिहाई
चाहता हूं मैं तुम्हारे चेहरे की बजती जंजीरों से
तुम्हें
लिखने की कोशिश में
कसीदे
काढ़ने लग जाता हूं मैं
उन
संगमरमरी पत्थरों के बने बूतों के
जिन्हें
इतिहास के सबसे क्रूर राजाओं ने
नींद
की गोली की तरह इस्तेमाल की गईं
लौंडियों
के नाम पर बनवाए हैं
मैं
तुम्हारे चेहरे को इस सदी से बाहर
पांच
हजार साल की स्मृति से बाहर
फेंक
देना चाहता हूं
नहीं
है एेसे चेहरे की अब कोई गुंजाइश
बीत
चुका है एेसे चेहरों का दौर
सरकार
से लेकर संवाद और संवेदना
सबके
डिजिटल हो जाने के बाद
चेहरे
मतलब रंग होता है
चेहरा
रौनक की बड़ी बहन है
काला
या सांवला कोई रंग नहीं
अभिशाप
है अभिशाप
चॉकलेट
के रैपर से लेकर
भगवान
की किताब तक
आज
सब रंगीन हैं
सबके
आवरण पर है
रौशनी
का महोत्सव
मैं
तुम्हें चेहरा कहना भी नहीं चाहता
तुम
चेहरा हो भी नहीं सकती
तुम
तो छाया हो बस
एक
एेसी छाया
जो
कभी मेरे सिर के ऊपर से
तो
कभी पांव के बीच से गुजरी है
एक
एेसी छाया
जो
मन के धूप को रोक लेती है
खुद
को और जलाने के लिए
तुम्हारे
चेहरे पर मेरी आंखें मेरे सपने
दोनों
मिलकर रोज गाते हैं शोकगीत
एक
एेसा शोकगीत
जो
चेहरे को सौंदर्य
और
सौंदर्य को मांसल खरोंच से भर देने की यातना पर
अभिभूत
न होने के दुख से जन्मा है
तुम्हारे
चेहरे के कारण
आईनों
ने झूठ बोलना सीख लिया है
इन
आईनों ने ही तो सबक रटाया है औरत जात को
कि
वह चेहरे को सिंदूर की सीध में नहीं
किसी
पुरुष की रीढ़ में देखे
कि
चेहरा सौंदर्य की डाल पर खिलने के लिए
नाखूनों
में भरने के लिए होता है
संस्कृति
और विकास का तेजाब मलने के लिए होता है
#रोप्रे
27.09.18
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ReplyDeleteमन को झकझोर कर एक अजीब-सा बोध कराने वाली रचना. गहन विश्लेषण. उत्कृष्ट सृजन के लिए हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteआभार!
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