Monday, June 13, 2011

वह कविता के पास आएगी


मेरी कविता के पास खड़ी वह लड़की
मेरी कविता से मेरे अनजाने क्या बतियाती है
कुछ गुलबूटे उसके सिलबटी आंचल के
खिलखिलाने लगे हैं मेरी कविता की शाखों पर
कई साल बाद लिख रहा हूं फिर एक कविता
वह उसी तरह आकर खड़ी है
थोड़ी थकी उदास मेरी कविता के पास

उसके होने का दखल मेरी कविता में कब-कहां बदलता है
यह मैं ही सोच रहा हूं कि कोई सोचने को कहता है
उसी की कामना लिखूं अपने अजन्मे शब्दों से
सोच के साथ शुरू होता है एक अंदरूनी समारोह
लेखनी की हरकत छवि का आरंभ
वेग-आवेश-सुरंग झील-समुद्र-आकाश
दौड़ती हुई धूप छिपती हुई छांह
पसीजता पसीना रेत की छाती से
दौड़ पड़ा मेमना अपनी ही हांक पर
हांफती हुई दहलीज उतरी हुई कमीज
अविराम यात्रा में सानंद कि हिचकी
पहले अर्धविराम फिर पूर्ण विराम

नहीं
मेरी इच्छा का मैल वह चाहकर भी नहीं धो पाएगी
वह ऐसे ही मेरी कविता के पास आएगी
बतियाएगी
मैं नहीं उतरूंगा अपनी कविता के जीने से
संबंधों का रिबन लेकर
ये गरिमा उजास पूर्णिमा
मैं नहीं लिख पाऊंगा
वह वहीं खह़ी होकर मेरी कविता से बड़ी हो जाएगी
मैं कविता लिखूंगा
वह कविता के पास आएगी 

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