मेरी कविता से मेरे अनजाने क्या बतियाती है
कुछ गुलबूटे उसके सिलबटी आंचल के
खिलखिलाने लगे हैं मेरी कविता की शाखों पर
कई साल बाद लिख रहा हूं फिर एक कविता
वह उसी तरह आकर खड़ी है
थोड़ी थकी उदास मेरी कविता के पास
उसके होने का दखल मेरी कविता में कब-कहां बदलता है
यह मैं ही सोच रहा हूं कि कोई सोचने को कहता है
उसी की कामना लिखूं अपने अजन्मे शब्दों से
सोच के साथ शुरू होता है एक अंदरूनी समारोह
लेखनी की हरकत छवि का आरंभ
वेग-आवेश-सुरंग झील-समुद्र-आकाश
दौड़ती हुई धूप छिपती हुई छांह
पसीजता पसीना रेत की छाती से
दौड़ पड़ा मेमना अपनी ही हांक पर
हांफती हुई दहलीज उतरी हुई कमीज
अविराम यात्रा में सानंद कि हिचकी
पहले अर्धविराम फिर पूर्ण विराम
नहीं
मेरी इच्छा का मैल वह चाहकर भी नहीं धो पाएगी
वह ऐसे ही मेरी कविता के पास आएगी
बतियाएगी
मैं नहीं उतरूंगा अपनी कविता के जीने से
संबंधों का रिबन लेकर
ये गरिमा उजास पूर्णिमा
मैं नहीं लिख पाऊंगा
वह वहीं खह़ी होकर मेरी कविता से बड़ी हो जाएगी
मैं कविता लिखूंगा
वह कविता के पास आएगी
Bahut ache se ehsas ko varnit kiya hai Sir!!
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