Wednesday, June 22, 2011

पटना


गंगा के किनारे-किनारे
कभी आएं पूरब से पश्चिम की तरफ
तो पटना पहले अजीमाबाद लगेगा
मजारो मस्जिद इकहरे-दुबले
शतरंजी बिसात की मानिंद दुधिया कंगूरे
बीच-बीच में कुछ पुराने
कुछ हाल के गड़े त्रिशूल
जिनके गर्दन की फांस जब-तब केसरिया रंग से धुलकर
हो जाती हैं फिर फीकी पहले जैसी
ये सब कितना रखती हैं माद्दा
यहां के जीवन को शोरगुल से भर देने का
नहीं मालूम
पर इनके होने के गुमान में दर्जनों बैंड के दस्ते
अपना साइनबोर्ड चौड़ा करने का अभिक्रम
रचते हैं यहां रोज-बरोज

आगे खबरनुमा जिक्र का मोहताज खुदाबख्श की लाइब्रेरी
पटना विश्वविद्यालय
पटना का पुराना अस्पताल
ये सब नाम हैं उन बंद गुफाओं के
जो अब सिर्फ तारीख के सैलानियों के लिए खुलते हैं
आम शहरी को तो है पसंद इन गुफाओं से चोरी गई
मूर्तियों की भोंडी नकल ही
कबाड़ी बाजार की तरह बिकती हैं जो खुलेआम
गंगा के कछार अशोक राजपथ पर
पटना के अल्पसंख्यक रेखाओं की गिनती भी
इस सफर की दरकार है
इसाई चर्च-स्कूलों चीनी हकीमों
ठठेरों-सोनारों के टूटे-बिखरे घर-घराने
अब यहां की मिट्टी से चीख-चीखकर बताती हैं
अपनी युगीन रिश्तेदारी
पटना की चर्चा में घरानेदारी के इन दावों का भी
गुजरना पड़ रहा है डोप टेस्ट से

आगे दूर से ही जाहिर होने वाली
पटना की सबसे खुली उपस्थिति का अहसास
गांधी मैदान
जहां गांधी ने स्वयं की थी प्रार्थना इस शहर के नागरिकों के साथ
जन-जीवन की हरियाली के लिए
मानवता की पांचाली के लिए
यहां अब सेक्स के अंडे
पहलवानी साफे और  झंडे बिकते हैं
सिनेमाई चौकीदारी में गांधी का पाषाण शव
और गोलघर पर बैठा गिद्ध करता है आगाह
गांधी मैदान को भूलने के खतरे से
सामाजिक न्याय के उलटी जनेऊ को धारण किए पुरोहित
यहां आते हैं साल में कई बार
कुछ गुमनामों के जन्मोत्सव
लाखों अनामों के सार्वजनिक पिंडदान के लिए

इस अपूर्ण यात्रा की यह भी एक संपूर्णता है
कि पहले पत्थर में भगवान के सबूत
आखिर में काठ की चिता जलती है
गंगा की सनातन गति कविता से बाहर
खुली बहस की मांग करती है
वह इस शहर के लिए
चिता से जीवन की तरफ क्यों बहती है

5 comments:

  1. बहुत क्रिएटिविटी है आपमें. सलाम. लिखते रहिये, बढते रहिये!

    सादर | नीरज भूषण

    ReplyDelete
  2. prawah hai aapki kabita mai.pasand aayee.

    ReplyDelete
  3. बहुत अच्‍छा लगा पढ़कर।

    ReplyDelete
  4. bahuut achaa...jeevant anubhav...!!!

    ReplyDelete