Sunday, July 17, 2011

छोकरा पूरबिया


बड़े से बड़े ताले में भी होती है
करतबी गुंजाइश चाबी के लिए
छब्बीस साल का वह छोकरा
शहर की बंद गलियों से बचा लाता है
हर बार
समझ की यह आखिरी कोर

नोएडा मोड़ पर भुट्टा  सेंकती
जानकी के धारीदार चेहरे पर
बची है जितनी स्पेस
आखिरी हिसाब किताब के लिए
छोकरे के वैलेट में रखे हैं उतने ही साल
प्यार और नौकरी के लिए
विश्व बैंक की सालाना रपट में भारत को
छालीदार छोकरों का कटोरा कहा गया है
छोकरे जेपी के गले गुर्दे नहीं
न बिग बी की दाढ़ी से शुरू खुजली हैं
घोड़ा है छोकरे का समय
नाल ठुकाए टांगों पर हिन-हिना रहा है
एक पूरी पीढ़ी का जुनून
छोकरा गंगा किनारे वाला

छोकरा पूरबिया हिज्जे के प्रामाणिक भाषा संस्कार का
चिट्ठी में बार-बार पूछता-बताता है अनपढ़ मां को
चुनाव और चुनौती लकड़ी और कुल्हाड़ी के बीच
मां हारता नहीं जीवन
न हारता है वह तकाजा
जिसने एक बेटे को परदेसी बसंत से
फोकट्यून चुराना सिखाया

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