Monday, October 31, 2011

पूरबिया बरत


(1)
पनघट-पनघट
पूरबिया बरत
बहुत दूर तक
दे गयी आहट
शहरों ने तलाशी नदी अपनी
तलाबों पोखरों ने भरी
पुनर्जन्म की किलकारी
गाया रहीम ने फिर
दोहा अपना
ऐतिहासिक धोखा है
पानी के पूर्वजों को भूलना

(2)
पानी पर तैरते किरणों का दूर जाना
और तड़के ठेकुआ खाने
रथ के साथ दौड़ पड़ना
भक्ति का सबसे बड़ा
रोमांटिक यथार्थ है
आलते के पांव नाची भावना
ईमेल के दौर में ईश्वर से संवाद है
मुट्ठी में अच्छत लेकर
मंत्र तुम भी फूंक दो
पश्चिम में डूबे सूरज की
पूरब में कुंडी खोल दो

(3)
डाला दौरा सूप सूपती
फल फूल पान प्रसाद
मौली बंधे हाथों से
पूरा होता विधान
पुरोहित कोई न कर्मकांड
लोक की गोद में खेली परंपरा
पीढ़ियों की सीढ़ी पर
गाती रेघाती है
बोलता है नाचते हुए
जब भी कोई गांव
वह पांव बन जाती है

Saturday, October 15, 2011

अगुआ हो गया अच्छा गांव


ठंडा पानी मीठा पांव
रुठे पांव दबाता गांव
पाहुन गीत सुनाता गांव
बीत चुका है रीता गांव

घुटता-पिसता रिसता गांव
चढ़ते-चढ़ते गिरता गांव
खड़े समय में झुकता गांव
तेज समय पर रुकता गांव

सपना टूटा टूटा गांव
हड्डी टूटी टूटा पांव
सब टूटे तो टूटा गांव
सब आगे बस छूटा गांव

कोलतार बीच कच्चा गांव
सबसे बूढ़ा बच्चा गांव
झूठ बोलता सच्चा गांव
अगुआ हो गया अच्छा गांव

पंचों का पेचीदा गांव
उलझन में संजीदा गांव
खाली गोरखधंधा गांव
नोच रहे सब अंधा गांव

अच्छा नहीं भूल जाना गांव
अच्छा नहीं याद आना गांव
अच्छा नहीं अब अच्छा गांव
अच्छा... फिर मिलते हैं...
अच्छा...अच्छा गांव 

Saturday, October 8, 2011

स्पर्शसुख का जैकपॉट


पहला शब्द पुरुष
फिर चुनिंदा फूल
और भीना-भीना प्यार
गोदने की तरह
चमड़ी में उतरे हैं शब्द कई
नीले-नीले हरे कत्थई
नंगी पीठ पर उसकी
थोड़ा ऊपर
बस वहीं
एकदम पास
उत्तेजना की चरमस्थली
स्पर्शसुख का जैकपॉट

सच
शादी की रजत वर्षगांठ पर
वह सिर्फ पति नहीं
उस कला संग्रहालय का
मालिक भी है
जहां के हर बुत में 
उतनी ही जान है
जितनी हथेली और
नाखूनों को चाहिए

Sunday, October 2, 2011

सौ नंबर पर प्यार


पांव से छिटककर दूर
जब बजने लगे पायल
तो बदहवासी में
सौ नंबर पर डॉयल

मनुहार का अत्याचारी सच
बयां करने वाली
पुलिस थाने में धूल खा रही फाइल
प्यार के चर्मरोग का
इलाज बताएं न बताएं
इस बीमारी के गलगला गए
यथार्थ को मुहरबंद जरूर करती हैं