Tuesday, September 11, 2018

दुविधा का समंदर


जिसे पाया नहीं
खोना उसका भी
कचोट देता है

जिसे गाया नहीं
उतरना उसका अधरों से
मन मसोस देता है

दोपहर सा मन
हर तरलता
सोख लेता है

दुविधा का समंदर
मांझी को हर बार
टोक देता है

सोच की
दुबली रेखा जो
अकेली ही गुजरती है

अकेले होने का खतरा
अच्छे-अच्छों को
दबोच लेता है

11.09.18

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