अच्छा है नभ बरस रहा है
बाहर-अंदर सब भींग रहा है
घोषित है हर ओर आद्रता
पानी
से मनमानी खतरनाक है
शुष्कता
अब शर्मनाक है
सोचा था वो एेसे होंगे
सोचा था वो वैसे होंगे
सोचा उसकी सोच के बाबत
सोच
बहुत यह खतरनाक है
शुष्कता
अब शर्मनाक है
पूरब को पुरबाई कह देना
वचन-वचन को गहराई
कुछ को कुछ लिख देना यूं ही
आदत
बहुत खतरनाक है
शुष्कता
अब शर्मनाक है
कुछ शब्द लिफाफे के भीतर
कुछ बात दबे तकिए के नीचे
कुछ शब्द हो गए सहयात्री
संवाद
बहुत यह खतरनाक है
शुष्कता
अब शर्मनाक है
#रोप्रे
22.09.18
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